दीक्षा का अर्थ है कि अपनी तपस्या के अंश को सामने वाले में स्थापित करना। जब भी गुरु या किसी भी सिद्ध सन्यासी योगी का आशीष प्राप्त होता है, तो दीक्षा ही ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से गुरु अपनी तपस्या का अंश देता है। जिसके माध्यम से रुके हुए काम भी बन जाते हैं। सालों साल तपस्या करने के बाद जब ऊर्जा इकट्ठी होती है, ऐसी दिव्य ऊर्जा अगर किसी भी व्यक्ति में प्रवाहित की जाती है तो जन्मो जन्मो के दोष कट जाते हैं और जीवन के रास्ते खुल जाते हैं।